कबीर के दोहे हिंदी में (Kabir Das Ke Dohe in Hindi) : “बुद्धि और भक्ति की अनमोल गाथाएं!”

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Kabir Das Ke Dohe in Hindi (कबीर के दोहे हिंदी में) : उस समय समाज में पाखंड का पगड़ा बहुत भारी था। लोग अंधविश्वास में जी रहे थे। अंधविश्वास की काली छाया पूरे समाज में छाई हुई थी। किसी को भी जीवन का असली सत्य क्या हैं यह बताने वाला कौन नहीं था।

उस समय कबीर दास जी का जन्म हुआ। कबीर जी 15 वीं शताब्दी के एक संत कवी थे। उन्होंने उस समय लिखे गए दोहे आज भी विश्व प्रसिद्ध हैं। उनकी रचना इतनी सरल और मीठी थी कि पढ़ने वाले व्यक्ति को कबीर जी उस शब्द के पीछे लिखने का क्या भाव हैं यह तुरंत समझ में आ जाएगा।

उनके कुछ दोहे के हमने नीचे दिए हैं। आप इसे जरूर पढ़ें।

कबीर के दोहे हिंदी में । Kabir Das Ke Dohe in Hindi

Kabir Das Ke Dohe in Hindi

कबीर जी जाति पात, पाखंड, छूआ-छूत और समाज में चल रही विपरीत रुढ़ियों और परंपराओं के कट्टर विरोधी थे। वे संत बाद में पहले समाज सुधारक बन गए थे। उन्होंने स्वरचित लिखे हुए दोहे और कविताओं के माध्यम से दुनिया को जीवन की सत्यता बताने का प्रयास किया।

क्योंकि उन्हें पता था कि काव्य ही एक ऐसा माध्यम है जिससे अंधश्रद्धा की चादर के नीचे सोए हुए समाज को हम जगा सकते हैं। उनके सरल और स्पष्ट रूप में लिखे गए दोहे हमने नीचे दिए हैं। आप इसे पढ़कर इसका अर्थ समझ सकते हैं।

“उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥” – कबीर दास

“श्वास-श्वास में नाम ले बृथा श्वास मत खोए।
न जाने इस श्वास को आवन होए ना होए॥” – कबीर दास

“दस द्वारे का पिंजरा तामे पंछी पौन।
रहने को अचरज नहीं जात अचम्भा कौन॥” – कबीर दास

“मात पितु गुरु करहिं ना सेवा चारो ओर फिरत पूजत है देवा।
ते नर के काल नचावे आशा दे दे मुआवे॥” – कबीर दास

“कथनी अति गुण सी करनी विष की लोए।
कथनी तजि करनी करो तो विष से अमृत होए॥” – कबीर दास

“जगत जनायो जिन्ही सकल सो गुरु प्रगटे आय।
जिन गुरु आँखिन देखियाँ सो गुरु दिया लखाय॥” – कबीर दास

“भली भई जो गुरु मिला नातर होती हानि।
दीपक ज्योति पतंग ज्यों पड़तयो पूरा जनि॥” – कबीर दास

“चकवी बिछुड़ी रैन की आन मिली प्रभात।
जो जन बिछुड़े नाम से दिवस मिले न रात॥” – कबीर दास

“पहिले दाता शिष्य भये तन मन अरप्यो शीश।
पाछे दाता गुरु भये नाम दियो बखशीश॥” – कबीर दास

“राम नामके पटतरे देवे को कछु नाहिं।
क्या ले गुरु संतोषिये हवस रही मनमाहिं॥” – कबीर दास

“गुरु धोबी शिष कापड़ा साबुन सिरजनहार।
सुरति शिला पर धोइये निकसै ज्योति अपार॥” – कबीर दास

“गुरु कुलाल शिष्य कुम्भ हैं, गढ़ गढ़ काढ़ै खोट।
अन्तर हाथ सहार दै बाहर बाहे चोट॥” – कबीर दास

“गुरु मानुष करि जानते ते नर कहिये अन्ध।
यहां दुखी संसारमें आगे यमके बन्ध॥” – कबीर दास

“सुखिया सब संसार है खाये और सोए।
दुखिया दास कबीर है जागे और रोए॥” – कबीर दास

“गुरु सीढ़ी ते ऊतरै शब्द बिहूना होय।
ताको काल घसीटि हैं राखि सकै नहिं कोय॥” – कबीर दास

कबीर दास के 10 दोहे । Kabir Das Ke Dohe in Hindi

कबीर दास के 10 दोहे

कबीर दास जी के द्वारा लिखे हुए दोहे काफी सुंदर और प्रेरणादायी हैं। जो बताते हैं कि आप अपने जीवन के दुःख का मूल कारण बड़ी सहजता से खोज सकते हैं। आपको हम बताना चाहते हैं कि कबीर दास जी अनपढ़ थे, लेकिन उन्होंने लिखे हुए दोहे आज पुरे संसार को ज्ञान दे रहे हैं। अगर कोई व्यक्ति यह दोहे पढ़कर इसकी सच्चाई जान लेता हैं और उसके अनुसार जीवन जीना शुरु करता हैं तो निश्चित रूप से वह जीवन का आनंद ले सकते हैं।

कबीर दास जी के द्वारा लिखे हुए दोहे आज पुरे संसार को ज्ञान दे रहे हैं, जो बताते हैं कि आप अपने जीवन के दुःख का मूल कारण बड़ी सहजता से खोज सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति यह दोहे पढ़कर इसकी सच्चाई जान लेता हैं और उसके अनुसार जीवन जीना शुरु करता हैं तो निश्चित रूप से वह जीवन का आनंद ले सकते हैं।

“बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥” – कबीर दास

“गुरु सो भेद जो लीजिये शीश दीजिये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये गखि जीव अभिमान॥” – कबीर दास

“सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनाई। धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाई॥” – कबीर दास

“रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय।
हीरा जनम अमोल है, कोड़ी बदली जाय॥” – कबीर दास

“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥” – कबीर दास

“माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर।
आशा तृष्णा ना मरी, कह गए दास कबीर॥” – कबीर दास

“कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥” – कबीर दास

“तिनका कबहुं ना निंदए, जो पांव तले होए।
कबहुं उड़ अंखियन पड़े, पीर घनेरी होए॥” – कबीर दास

“माला फेरत जुग गया, गया न मन का फेर।
कर का मन का डा‍रि दे, मन का मनका फेर॥” – कबीर दास

“माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रौंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥” – कबीर दास

“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर॥” – कबीर दास

“ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए, औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए” – कबीर दास

“गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय।
बलिहारी गुरु आपनो, गोविन्द दियो बताय॥” – कबीर दास

“धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय।
माली सींचे सौ घड़ा, ऋतु आए फल होय॥” – कबीर दास

“चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए।
वैद बिचारा क्या करे, कहां तक दवा लगाए॥” – कबीर दास

“साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय॥” – कबीर दास

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सारांश

आज इस लेख में हमने कबीर दास के जीवन को एक नई दिशा देने वाले कुछ दोहे देखे। ये दोहे इतनी सुंदर और मीठी भाषा में लिखे गए हैं कि आपको पढ़कर सच में आनंद आया होगा। ये दोहे आपको पसंद आए होंगे तो आप अपने प्रियजनों और दोस्तों के साथ जरूर शेयर करें ताकि उनकी जिंदगी में भी ये दोहे पढ़कर बदलाव आ सके। धन्यवाद।

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