Sant Ravidas Quotes In Hindi – संत रविदास के अनमोल विचार!
ननमस्कार दोस्तों, आज इस लेख में हम Sant Ravidas Quotes In Hindi देखने जा रहे हैं। संत रविदास ने अपनी रचनाओं में खुद को रैदास नाम से उल्लेखित किया है, इसलिए लोग उन्हें संत रैदास भी कहते हैं। वे 15वीं-16वीं सदी के एक महान संत थे। उनके जन्म तिथि के बारे में अलग-अलग जानकारी उपलब्ध है, लेकिन उनके प्रसिद्ध दोहे “चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास, दुखियों के कल्याण हेतु प्रगटे श्री रविदास” के अनुसार, उनका जन्म 1433 में हुआ माना जाता है।
उनके जीवनकाल में, संत रविदास ने समाज में भाईचारा, अमन, और एकता बनाए रखने का महत्वपूर्ण कार्य किया। उस समय लोग जाति के आधार पर एक-दूसरे को देखने लगे थे और छुआछूत की भावना बढ़ गई थी। इस भावना को जड़ से मिटाने के लिए उन्होंने अथक प्रयास किया। उनकी रचनाओं ने समाज में प्रबोधन का कार्य किया।
संत रविदास की काव्य रचनाओं से यह अनुमान लगाया जाता है कि वे भगवान राम और भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में विश्वास करते थे। हालांकि, वे निर्गुण भक्ति धारा के प्रमुख संत थे और निर्गुण संप्रदाय का प्रचार और प्रसार किया। उनके अनुयायी उनसे जुड़ने लगे और उन्होंने दिखाए गए भक्ति मार्ग को अपनाया।
आज भी उनके बहुत से अनुयायी पूरे भारत में हैं। संत रविदास अपनी रचनाओं के माध्यम से जीवित हैं। नीचे हमने कुछ प्रसिद्ध Sant Ravidas Quotes In Hindi साझा किए हैं। इन्हें जरूर पढ़ें और अपने मित्रों के साथ साझा करें।
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Contents
Sant Ravidas Quotes In Hindi
“जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात।
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जातियों में विभाजन पे विभाजन होते हैं, जैसे पेड़ की पत्तियाँ। रैदास कहते हैं, जब तक जाति की भावना नहीं मिटेगी, मनुष्यों में एकता नहीं हो सकती।
“जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात।
रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।”
— संत रोहिदास
अर्थ: किसी के जन्म या जाति के बारे में मत पूछो, जाति और वंश की बात मत करो। रैदास कहते हैं, भगवान के सभी बच्चे समान हैं, कोई भी ऊंच-नीच नहीं है।
“कह रैदास तेरी भगति दूरि है, भाग बड़े सो पावै।
तजि अभिमान मेटि आपा पर, पिपिलक हवै चुनि खावै।”
— संत रोहिदास
अर्थ: रैदास कहते हैं कि सच्ची भक्ति दूर की बात है और केवल भाग्यशाली ही इसे प्राप्त कर पाते हैं। अभिमान और आत्म-महत्व को छोड़कर, साधारण जीवन जीना चाहिए, जैसे चींटी छोटी-छोटी चीजें खाकर संतुष्ट रहती है।
“कृष्ण, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा।
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जब तक आप कृष्ण, करीम, राम, हरि, और राघव को एक ही मान कर नहीं देखते, तब तक वेद, क़ुरान, पुराण, और अन्य धर्मग्रंथों में सच्चे एकता का दर्शन नहीं होगा। संत रोहिदास कहते हैं कि सभी धर्मों और नामों में एक ही ईश्वर की सच्चाई है।
“जा देखे घिन उपजै, नरक कुंड में बास।
प्रेम भगति सों ऊधरे, प्रगटत जन रैदास।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जहां घृणा और तिरस्कार उत्पन्न होता है, वहाँ नरक के समान स्थिति होती है। प्रेम और भक्ति के माध्यम से ही व्यक्ति इस स्थिति से उबर सकता है। रैदास कहते हैं कि प्रेम और भक्ति से ही मुक्ति प्राप्त की जा सकती है।
“करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस।
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।”
— संत रोहिदास
अर्थ: कर्मों के बंधनों में बंधे रहो, लेकिन उनके फल की आशा मत छोड़ो। कर्म ही मनुष्य का धर्म है, और यही सत्य है, जैसा कि रविदास ने कहा।
“ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन,
पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।”
— संत रोहिदास
अर्थ: गुणहीन ब्राह्मण की पूजा मत करो; उसकी बजाय, उस चंडाल (नीच जाति के व्यक्ति) की पूजा करो जो गुणवान और योग्य हो। संत रोहिदास इस बात को स्वीकार करते हैं कि किसी व्यक्ति की जाति से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका गुण और व्यक्तित्व होता है।
“रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय।
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥”
— संत रोहिदास
अर्थ: प्रेम छिपाया नहीं जा सकता, चाहे कोई कितनी भी कोशिश करे। प्रेम कभी भी शब्दों से नहीं प्रकट होता, बल्कि आँखों के आंसू उसकी सच्चाई को दर्शाते हैं। संत रोहिदास कहते हैं कि प्रेम की वास्तविकता कभी छिपाई नहीं जा सकती; यह हमेशा आत्मा से बाहर आती है।
“जाकी छोति जगत कउ लागै ता पर तुहीं ढरै।
नीचहु ऊच करै मेरा गोबिंदु काहू ते न डरै।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जिसे दुनिया में हानि लगती है, वह डरता है, लेकिन मेरे गोविंद (ईश्वर) को किसी से डर नहीं लगता। वह नीच से ऊच बना सकता है, इसलिए उसे किसी भी व्यक्ति या स्थिति से भय नहीं होता। संत रोहिदास का संदेश है कि ईश्वर की शक्ति असीम है और वह किसी भी बाधा से परे है।
“चौदह सौ तैंतीस की माघ सुदी पंदरास,
दुखियों के कल्याण हेतु प्रगटे श्री रविदास।”
— संत रोहिदास
अर्थ: संत रविदास का जन्म 1433 (माघ सुदी पंद्रह) को हुआ था, जो दुखियों और पीड़ितों के कल्याण के लिए हुआ। रैदास यहाँ अपने जन्म की तिथि और उद्देश्य का उल्लेख करते हुए बताते हैं कि उनका जीवन विशेष रूप से दुःखियों की सहायता और उनके लिए कल्याणकारी कार्यों के लिए समर्पित था।
“नामदेव कबीरु तिलोचन सधना सैनु तरै।
कहि रविदास सुनहु रे सतंहु हरिजीउ ते सभै सरै।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: नामदेव, कबीर, तिलोचन, और सधना जैसे संत और भक्त सभी को ईश्वर की भक्ति से मुक्ति मिली। रैदास कहते हैं, सुनो सच्चे साधु, कि हरि की भक्ति से सभी बाधाएँ समाप्त हो जाती हैं।
“रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच।
नकर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: रैदास कहते हैं कि जन्म के कारण कोई भी व्यक्ति नीच नहीं होता। नीचता का कारण उसकी नीच मानसिकता और खराब कर्म होते हैं। इसलिए, जाति या जन्म से किसी को नीच मानना गलत है; वास्तविक नीचता कर्मों पर निर्भर करती है।
“हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस।
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जो व्यक्ति ईश्वर के समान मूल्यवान हीरा छोड़कर अन्य वस्तुओं की आशा करता है, वह व्यक्ति नरक में जाएगा। रैदास कहते हैं कि ऐसे लोग अंत में पीड़ा और दुःख का सामना करेंगे, क्योंकि उन्होंने सच्चे और दिव्य को छोड़कर अस्थायी चीजों की इच्छा की।
“ऐसा चाहूं राज मैं जहां मिले सबन को अन्न।
छोट बड़ो सब सम बसे रविदास रहे प्रसन्न।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: मैं ऐसा राज्य चाहता हूँ जहाँ सभी को पर्याप्त भोजन मिले और हर कोई, चाहे छोटा हो या बड़ा, समान रूप से बसा हो। रैदास कहते हैं कि ऐसा राज्य ही सच्चे सुख और प्रसन्नता का प्रतीक है।
“वर्णाश्रम अभिमान तजि, पद रज बंदहिजासु की।
संदेह-ग्रंथि खंडन-निपन बानि विमुल रैदास की।”
— संत रोहिदास
अर्थ: वर्ण और आश्रम (जाति और सामाजिक स्थिति) के अभिमान को छोड़ दो और ईश्वर के चरणों की रज (धूल) को अपने सिर पर मानो। संदेह और भ्रांतियों को दूर करने वाले रैदास के शब्द अमूल्य हैं। रैदास यहाँ जाति और सामाजिक स्थिति के गर्व को छोड़कर ईश्वर की भक्ति और उसके चरणों की महिमा को स्वीकार करने की सलाह देते हैं।
“मन ही पूजा मन ही धूप,
मन ही सेऊं सहज स्वरूप।”
— संत रोहिदास
अर्थ: पूजा, धूप, और आराधना सब मन से होती है; मन ही आत्मा का असली स्वरूप है। रैदास कहते हैं कि सच्ची भक्ति और पूजा केवल बाहरी कर्मों से नहीं, बल्कि मन की शुद्धता और समर्पण से होती है।
“अब कैसे छूटे राम रट लागी।
प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अँग-अँग बास समानी॥”
— संत रोहिदास
अर्थ: अब मैं कैसे राम की स्मृति से मुक्त हो सकता हूँ, जब यह रट मेरे जीवन का हिस्सा बन चुकी है? हे प्रभु, आप चंदन की तरह हैं और मैं पानी की तरह, जिसमें आपकी सुगंध हर अंग में समाई हुई है। रैदास यहाँ ईश्वर की असीमित और अनंत उपस्थिति का वर्णन कर रहे हैं और यह प्रकट कर रहे हैं कि उनके लिए प्रभु की याद और भक्ति अत्यंत अनिवार्य है।
“रैदास कहै जाकै हदै, रहे रैन दिन राम।
सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: रैदास कहते हैं कि जिनके दिल में दिन-रात राम ही बसे रहते हैं, वे भक्त भगवान के समान होते हैं। ऐसे भक्त को क्रोध और इन्द्रिय-संवेदनाओं का प्रभाव नहीं पड़ता।
“जेती नारी देखियाँ मन दोष उपाय।
ताक दोष भी लगत है जैसे भोग कमाय।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जितनी भी नारियों को मैंने देखा, मन में दोष निकालने के उपाय ही होते हैं। ऐसे में, यदि कोई दोष दिखाई दे, तो वह भी ऐसे ही लगता है जैसे भोग के परिणाम होते हैं। रैदास इस पंक्ति में दोषारोपण और मानसिक दृष्टिकोण की बात कर रहे हैं, यह दर्शाते हुए कि दूसरों के दोषों को देखने की प्रवृत्ति भी व्यक्ति के अपने दृष्टिकोण और मानसिकता पर निर्भर करती है।
“मन चंगा तो कठौती में गंगा।”
— संत रोहिदास
अर्थ: यदि मन शुद्ध और अच्छा है, तो किसी भी साधारण स्थान (जैसे कठौती) में भी गंगा नदी की पवित्रता अनुभव की जा सकती है। रैदास यहाँ यह कहते हैं कि आत्मा की शुद्धता और भक्ति का महत्व बाहरी स्थान या वस्त्रों से अधिक होता है। मन की पवित्रता ही वास्तविक आध्यात्मिकता और शुद्धता को दर्शाती है।
“रामानंद मोहि गुरु मिल्यौ, पाया ब्रह्म विसास।
रामनाम अमी रस पियौ, रविदास हि भयौ षलास ॥”
— संत रोहिदास
अर्थ: जब मुझे गुरु रामानंद मिले, तब मैंने ब्रह्मा (ईश्वर) के प्रति विश्वास प्राप्त किया। मैंने रामनाम के अमृत रस को पिया, और रैदास ने शांति और संतोष का अनुभव किया। रैदास यहाँ गुरु की महिमा और रामनाम की शक्ति का वर्णन कर रहे हैं, जो उनके जीवन में गहरी शांति और विश्वास लाए।
“रैदास एक ही बूंद से, भयो जगत विस्तार।
ऊंच नींच केहि विधि भये, ब्राह्मण और चमार।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: रैदास कहते हैं कि पूरे संसार का विस्तार एक ही बूंद (ईश्वर) से हुआ। ऊंच-नीच की विभाजन कैसे हुए, यह एक रहस्य है, जैसे ब्राह्मण और चमार जैसी जातियों की अलग-अलग श्रेणियाँ। रैदास यहाँ यह बताना चाहते हैं कि सभी मानव जाति की उत्पत्ति एक ही ईश्वर से हुई है, और जाति और ऊंच-नीच की भेदभाव केवल सामाजिक निर्माण हैं।
“चमड़े, मांस और रक्त से, जन का बना आकार।
आँख पसार के देख लो, सारा जगत चमार।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: मनुष्य का शरीर चमड़े, मांस, और रक्त से बना है। यदि आप अपनी आँखें खोलकर देखेंगे, तो पाएंगे कि पूरी दुनिया में यही तत्व हैं, और हर व्यक्ति एक ही प्रकार के पदार्थ से बना है। रैदास इस विचार को व्यक्त कर रहे हैं कि जाति और ऊंच-नीच का भेद केवल सामाजिक निर्माण है; सभी मानव शरीर एक समान तत्वों से बने हैं।
“हीरा छाड़ कै, कैरे आन की आस।
ते नर दोजख जाएंगे, सत्य भाखै रविदास।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: जो व्यक्ति सच्चे हीरे (ईश्वर या सच्चाई) को छोड़कर अन्य वस्तुओं की आशा करता है, वह नरक में जाएगा। रैदास कहते हैं कि सत्य यही है कि जो ईश्वर या सच्ची भक्ति को छोड़कर अस्थायी चीजों की ओर आकर्षित होता है, उसे अंत में दुःख और पीड़ा का सामना करना पड़ेगा।
“हिंदू तुरक नहीं, कछु भेदा सभी मह एक।
रक्त और मासा दोऊ एकऊ दूजा नाहीं, पेख्यो सोइ रैदासा।”
— संत रोहिदास
अर्थ: हिंदू और तुर्क (मुस्लिम) के बीच कोई भेद नहीं है, सभी एक ही हैं। रक्त और मांस दोनों एक ही हैं, कोई दूसरा भेद नहीं है; जिसे रैदास ने देखा है। रैदास यहाँ यह स्पष्ट करते हैं कि जाति, धर्म, और अन्य भेद केवल सामाजिक निर्माण हैं; वास्तव में सभी मानव एक ही मूल तत्व से बने हैं।
“गरीब, नौलख नानक नाद में, दस लख गोरख पास।
अनंत संत पद में मिले, कोटि तिरे रैदास।।”
— संत रोहिदास
अर्थ: गरीब के पास नौलख (नौ लाख) और नानक के नाद (संगीत) के भीतर है, जबकि दस लाख (धन) गोरख के पास है। रैदास कहते हैं कि अनंत संतों के पद (संतत्व) में मिलकर कोटियों (अनंत) की प्राप्ति होती है। यहाँ रैदास यह दर्शाना चाहते हैं कि सच्चे संत और भक्ति के मार्ग में अनंत धन और आध्यात्मिक सम्पत्ति मिलती है, जो धन या worldly सम्पत्ति से कहीं अधिक मूल्यवान है।
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सारांश
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